सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला लेते हुए कहे की भारत के मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर आरटीआई के अंतर्गत आएगा अब से और अपने इस फैसले को सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा की पारदर्शिता न्यायिक स्वतंत्रता को कम नहीं करता है सुप्रीम कोर्ट के सेकेट्री जनरल और शीर्ष अदालत के केंद्रीय लोक सुचना अधिकारी द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के खिलाफ 2009 में दायर की गई थी जिसमे यह साफ़ तोर पर कहा गया था की सीजेआई का पद सुचना के अधिकार के अंदर आता है।
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पीठ में सीजेआई समेत जस्टिस एनवी रमना, डीवाई चंद्रचुड़, दीपक गुप्ता, और जस्टिस संजीव खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दर्ज इस फैसले पर अपना फैसला सुनाया था जिसमे सुप्रीम कोर्ट के महासचिव ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है जो की 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया था।
दिल्ली हाईकोर्ट ने उस वक़्त कहा था की सीजेआई का ऑफिस एक सार्वजानिक प्राधिकरण है और इसको सुचना के अधिकार ( RTO ) के अंतर्गत लाना चाहिए और इसके बाद पीठ ने इस फैसले को इस साल अप्रैल में इस याचिका को सुरक्षित रख दी थी।
Chief Justice of India (मुख्य न्यायधीश) रंजन गोगोई ने पहले ही कह दिए थे की पारदर्शिता के नाम पर किसी एक संस्था को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए सुभाष चंद्र अग्रवाल जो की आरटीआई के कार्येकर्ता है उन्होंने 2007 में याचिका डालते हुए पूछे थे की की सुप्रीम कोर्ट के जजों की सम्पति कितनी है जिसका सुभाष को कोई जवाब नहीं मिला था और उनके इस याचिका को सुनने या बताने से इंकार कर दिया गया था।
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आरटीआई के कार्येकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल इसके बाद में केन्द्रीय सुचना आयोग पहुंचे जंहा पर Chief Justice of India (मुख्य न्यायधीश) को इस बात पर फैसला देने के लिए कहा गया की मुख्य न्यायधीश का दफ्तर भी कानून के अंदर आता है इन सब के बाद 2009 में मुख्य न्यायधीश आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है हलांकि वह पर Chief Justice of India (मुख्य न्यायधीश) के फैसले को कायम रखा गया है।